भारतीय लोकतंत्र की चुनौतियां: एक गहरी समस्या

भूमिका



भारत, दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश के रूप में जाना जाता है। यहाँ करोड़ों लोग अपने मताधिकार का प्रयोग करके सरकार चुनते हैं। परंतु इस विशाल लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने कई गंभीर चुनौतियां हैं जो इसकी मजबूती को कमजोर कर रही हैं।

मुख्य समस्याएं जो लोकतंत्र को प्रभावित कर रही हैं

भ्रष्टाचार की व्यापकता

भारतीय राजनीति में भ्रष्टाचार एक गंभीर समस्या बन गया है। ट्रांसपैरेंसी इंटरनेशनल के अनुसार, 2022 में भारत को भ्रष्टाचार बोध सूचकांक में 180 देशों में से 85वें स्थान पर रखा गया है। 62% से अधिक भारतीयों ने किसी न किसी समय पर नौकरी पाने के लिए रिश्वत दी थी।

राजनीतिक दलों और बड़े कॉर्पोरेट घरानों के बीच नजदीकी संबंध इस भ्रष्टाचार को और बढ़ावा देते हैं। कारपोरेट घराने राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने के लिए अपने दलालों का उपयोग करते हैं। 2जी स्पेक्ट्रम, कोयला खनन आवंटन, और राष्ट्रमंडल खेल जैसे बड़े घोटाले इसके स्पष्ट उदाहरण हैं।

सामाजिक और आर्थिक असमानता

भारत दुनिया के सबसे असमान देशों में से एक है। विश्व असमानता रिपोर्ट 2022 के अनुसार, शीर्ष 10% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय संपत्ति का 77% भाग है। सबसे समृद्ध 1% के पास देश की 53% संपत्ति है, जबकि आधी गरीब आबादी के पास केवल 4.1% संपत्ति है।

आय असमानता भी गंभीर स्थिति में है। शीर्ष 10% और शीर्ष 1% आबादी के पास कुल राष्ट्रीय आय का क्रमशः 57% और 22% हिस्सा है, जबकि निचले 50% की हिस्सेदारी घटकर केवल 13% रह गई है।

कर प्रणाली में भी विषमता दिखती है - कुल GST संग्रहण का 64% निचली 50% आबादी से आता है, जबकि शीर्ष 10% का योगदान मात्र 4% है।

अशिक्षा और अज्ञानता का प्रभाव

देश में अभी तक एक चौथाई से भी कम जनता साक्षर है। अशिक्षित लोग अक्सर धमकाने और बहकाने का शिकार होते हैं। वे अपने लोकतांत्रिक अधिकारों और कर्तव्यों को ठीक से समझ नहीं पाते हैं, जिससे राजनीतिक दलों द्वारा उनका शोषण होता है।

अशिक्षा के कारण अंधविश्वास और धार्मिक कट्टरता भी फैलती है। शिक्षा की कमी मानसिक विकास को बाधित करती है और तर्कसंगत सोच में बाधा डालती है।

जातिवाद और सांप्रदायिकता

भारतीय राजनीति में जाति और धर्म का दुरुपयोग एक प्रमुख समस्या है। राजनीतिक दल चुनाव जीतने के लिए जातिगत और धार्मिक भावनाओं का इस्तेमाल करते हैं। यह समाज में विभाजन को गहरा करता है और राष्ट्रीय एकता को कमजोर करता है।

जाति व्यवस्था ने भारतीय समाज में असमानता को स्थायी बनाया है। छुआछूत की भावना और सामाजिक भेदभाव अभी भी व्यापक रूप से मौजूद है। इससे लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन होता है।

राजनीतिक अपराधीकरण और धनबल का प्रभाव

वर्तमान लोकसभा में 200 से अधिक सांसदों पर आपराधिक मुकदमे दर्ज हैं। 2019 के आम चुनाव में 43% सांसदों पर किसी न किसी अपराध का आरोप था। राजनीति में धनबल का प्रभाव बढ़ता जा रहा है और चुनाव एक महंगा खेल बन गया है।

अपराधी पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का राजनीति में बढ़ता हस्तक्षेप लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों को खतरे में डालता है। चुनावों में हिंसा, बूथ कब्जा, और धमकी आम हो गई है।

संस्थानों की स्वतंत्रता में गिरावट

भारत में न्यायपालिका, चुनाव आयोग, और अन्य संवैधानिक संस्थानों पर राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है। इससे इन संस्थानों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल खड़े होते हैं। V-Dem इंस्टिट्यूट की रिपोर्ट के अनुसार, भारत में लोकतंत्र की गुणवत्ता में गिरावट आ रही है।

मीडिया की आजादी भी सिकुड़ रही है। सरकारी दबाव, स्वयं-सेंसरशिप, और पत्रकारों पर हमले बढ़ रहे हैं।

सामाजिक समस्याओं का प्रभाव

गरीबी, बेरोजगारी, और स्वास्थ्य सेवाओं तक असमान पहुंच जैसी समस्याएं लोकतांत्रिक व्यवस्था को कमजोर करती हैं। 63 मिलियन भारतीय हर साल स्वास्थ्य देखभाल की लागत के कारण गरीबी में धकेल दिए जाते हैं। 74% आबादी स्वस्थ आहार का खर्च नहीं उठा सकती।

महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी कम है और लैंगिक भेदभाव व्यापक है। महिला श्रमिकों की आय में हिस्सेदारी केवल 18% है।

निष्कर्ष

भारतीय लोकतंत्र के सामने ये सभी चुनौतियां गंभीर हैं और इनका एक-दूसरे से गहरा संबंध है। भ्रष्टाचार, असमानता, अशिक्षा, जातिवाद, और राजनीतिक अपराधीकरण मिलकर एक दुष्चक्र बनाते हैं जो लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करता है।

इन समस्याओं से निपटने के लिए व्यापक सुधार की जरूरत है - शिक्षा का विस्तार, भ्रष्टाचार उन्मूलन, आर्थिक न्याय, राजनीतिक सुधार, और सामाजिक जागरूकता। केवल इन सभी मोर्चों पर एक साथ कार्य करके ही भारतीय लोकतंत्र को मजबूत और न्यायसंगत बनाया जा सकता है।

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