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क्या हार, क्या जीत — जब किस्मत ना हो साथ तो कोई भी चीज़ मायने नहीं रखती

<script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-4717942656717437" crossorigin="anonymous"></script>     क्या हार, क्या जीत — जब किस्मत ना हो साथ तो कोई भी चीज़ मायने नहीं रखती क्या हार, क्या जीत — किस्मत का खेल जब किस्मत साथ न हो, हर राह लगती सुनसान। चाह कर भी मंज़िल से, दूर रह जाते अरमान। मेहनत की चिंगारी जलती, पर हवा नहीं मिलती। लक्ष्य की ऊँची दीवारें, खड़े-खड़े ही मिलती। कई बार हाथों की रेखा, मुँह चिढ़ाती है बार-बार। तक़दीर के पन्नों पर, नाम लिखने से करती इनकार। पर कौन कहता है केवल, भाग्य ही खेल बनाता? जो छू ले आसमान को, वो ज़मीन से हिम्मत जुटाता। ठोकरें भी सिखाती हैं, जीवन का असली अर्थ। किस्मत रूठे तो क्या, कोशिशों से बदलो पथ। कभी हार है, कभी जीत है, कल छाँव है, तो आज धूप। चलते रहो निरंतर तुम, बनाओ किस्मत की रूप। मत कोसो अपने भाग्य को, न हारो अपने मन की बात। मिलती है मंज़िल उसे ही, जो चलता है दिन-रात। जीवन एक लंबी दौड़ है जिसमें हर इंसान अपने-अपने सपनों, उम्मीदों और लक्ष्यों को लेकर चलता है। कोई चा...